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Nag panchami : उत्तर भारत मे प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी मनाई जाती है, भारत के कुछ भागो मे इसे श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की पंचमी को भी मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में नागों को बहुत ऊंचा दर्जा दिया जाता है, नाग देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश से एकरूप हुए देवता हैं। नागदेवता ही पृथ्वी का मेरूदंड, अर्थात रीढ की हड्डी हैं । शास्त्रानुसार शेषनाग नाग मतांतर से वासुकी नाग ने ही पृथ्वी को अपने मस्तक पर धारण किया हुआ है, अर्थात पृथ्वी नाग के फन पर ही टिकी हुई है। क्षीरसागर मे भगवान विष्णु की “शैय्या तथा सिर” पर छत्र समान, शेषनाग ही है । भगवान विष्णु ने जब-२ भी धरती पर अवतार रूप मे अवतरण अथवा जन्म लिया तो उनके साथ-२ शेषनाग भी अन्य रूपो मे भगवान के साथ धरती पर अवतरित होते रहे, त्रेता युग मे छोटे भाई लक्ष्मण तथा द्वापर युग मे बड़े भाई बलराम के रूप में शेषनाग ने भगवान की लीला मे उनका साथ निभाया। ऐसा माना जाता है कि श्रीविष्णु भगवान के तमोगुण से शेषनाग की उत्पत्ति हुई ।

सागरमंथन मे सागर को मथने के लिए कूर्मावतार के ऊपर मथानी (मधानी) की रस्सी बनकर वासुकी नाग ने ही देवताओं और दैत्यों की सहायता की थी। इसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के अध्याय 10, श्लोक 29 में अपनी विभूति का कथन किया है कि- नागों में श्रेष्ठ ‘अनंत’ मैं ही हूं’। भगवान शंकर ने नाग को अपने कंठ मे धारण करके इन्हे उच्च स्थान दिया। इस प्रकार भगवान शंकर की देह पर नौ नाग माने जाते हैं, इसलिए नागपंचमी के दिन नाग का पूजन करना अर्थात नौ नागों के संघ का एक प्रतीक का पूजन करना है, इस प्रकार यह सगुण रूप में शिव की पूजा करने के समान है, इसलिए इस दिन वातावरण में आई हुई शिवतरंगें आकर्षित होती हैं तथा यह तंरगे समस्त जीवो के लिए वर्ष भर लाभकारी सिद्ध होती हैं।

Nag panchami 2024 : नागपंचमी पर नागपूजा का महत्त्व

Nag panchami 2024 : भारतीय धर्म शास्त्रो के अनुसार जन्मजेय जोकि अर्जुन के पौत्र और परीक्षित के पुत्र थे। उन्होंने सर्पों से बदला लेने व नाग वंश के विनाश हेतु एक नाग यज्ञ किया क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सर्प के काटने से हुई थी। नागों की रक्षा हेतु इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने रोका था। जिस दिन इस यज्ञ को रोका गया उस दिन श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि थी और तक्षक नाग व उसका शेष बचा वंश विनाश से बच गया। मान्यता है कि यहीं से नाग पंचमी पर्व मनाने की परंपरा प्रचलित हुई।

शेषनाग अपने फन पर पृथ्वी को धारण करते हैं । वे पाताल में रहते हैं। उनके सहस्र फन हैं । प्रत्येक फन पर एक हीरा है। उनकी उत्पत्ति श्रीविष्णु के तमोगुण से हुई। श्रीविष्णु प्रत्येक कल्प के अंत में महासागर में शेषनाग के आसन पर शयन करते हैं। त्रेता युग में श्रीविष्णु ने राम-अवतार धारण किया। तब शेषनाग ने लक्ष्मण का अवतार लिया। द्वापर एवं कलियुग के संधिकाल में श्रीविष्णु ने श्रीकृष्ण का अवतार लिया। उस समय शेषनाग बलराम बने। महाभारत काल मे श्रीकृष्ण ने यमुना के कुंड में कालिया नाग का मर्दन किया। उस दिन श्रावण मा।स शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि थी, इसलिए भी नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है।

पुराणो के अनुसार “सत्येश्वरी” नामक एक देवी मां थी। सत्येश्वर नामक उसका एक भाई था। सत्येश्वर की मृत्यु नागपंचमी से एक दिन पूर्व हो गई थी। सत्येश्वरी को उसका भाई नाग के रूप में दिखाई दिया। तब उसने उस नागरूप को अपना भाई माना। उस समय नागदेवता ने वचन दिया कि, जो भी स्त्री मेरी पूजा भाई के रूप में करेगी, मैं भाई समान उसकी रक्षा करूंगा। तब से महिलाएं नाग पंचमी के दिन नाग की पूजा कर नागपंचमी मनाती है।

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Why is Naga Panchami celebrated? : पूर्वजो एवं नागों का परस्पर संबंध

Why is Naga Panchami celebrated? : हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार र्भुवलोक एवं पितृलोक में फंसे हुए पूर्वज अधिकांश रूप से काले नागों के रूप में अपने वंशजों को दर्शन कराते हैं ।

  • सात्त्विक पूर्वज पीले रंग के नागों के रूप में दर्शन एवं आशीर्वाद देते हैं । घर, संपत्ति एवं परिजनों के प्रति बहुत ही आसक्ति वाले पूर्वजों को पृथ्वी पर नागयोनी में जन्म मिलता है ।
  • मनुष्य जन्म में दूसरों को कष्ट पहुंचाकर वाममार्ग अर्थात गलत ढंग से संपत्ति अर्जित करने वाले पूर्वजों को उनके अगले जन्म में पाताल में काले नागों के रूप में जन्म मिलता है ।
  • देवता के कार्य में सहभागी तथा सज्जन प्रवृत्ति के लोग पितृलोक में निवास करने के पश्‍चात शिवलोक के पास स्थित दैवीय नागलोक में पीले नागों के रूप में वास करते हैं । हिन्दू धर्म मे नागदेवता की पूजा के लिए प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी के दिन नागो की विशेष पूजा की जाती है ।

नागपंचमी के दिन वातावरण में स्थिरता आती है । सात्त्विकता ग्रहण करने के लिए यह योग्य और अधिक उपयुक्त काल है। इस दिन शेषनाग और विष्णु की इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए। ‘आपकी कृपा से इस दिन शिवलोक से प्रक्षेपित होनेवाली तरंगें मेरे द्वारा अधिकाधिक ग्रहण होने दीजिए। मेरी आध्यात्मिक प्रगति में आनेवाली सर्व बाधाएं नष्ट होने दीजिए, मेरे पंचप्राणों में देवताओं की शक्ति समाए तथा उसका उपयोग ईश्वरप्राप्ति और राष्ट्ररक्षा के लिए होने दीजिए । मेरे पंचप्राणों की शुद्धि होने दीजिए । ऐसी मान्यता है कि जो भी इस दिन श्रद्धा व भक्ति से नागदेवता का पूजन करता है उसे व उसके परिवार को कभी भी सर्प भय नहीं होता। इस बार यह पर्व 09 अगस्त शुक्रवार को है। इस दिन नागदेवता की पूजा किस प्रकार करें, इसकी विधि एवं मुहूर्त इस प्रकार है।

What to eat in Nag Panchami? : पूजन विधि

What to eat in Nag Panchami? : नागपंचमी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले भगवान शंकर का ध्यान करें नागों की पूजा शिव के अंश के रूप में और शिव के आभूषण के रूप में ही की जाती है। क्योंकि नागों का कोई अपना अस्तित्व नहीं है। अगर वो शिव के गले में नहीं होते तो उनका क्या होता। इसलिए पहले भगवान शिव का पूजन करेंगे। शिव का अभिषेक करें, उन्हें बेलपत्र और जल चढ़ाएं। इसके बाद शिवजी के गले में विराजमान नागों की पूजा करे। नागों को हल्दी, रोली, चावल और फूल अर्पित करें। इसके बाद चने, खील बताशे और जरा सा कच्चा दूध प्रतिकात्मक रूप से अर्पित करेंगे। घर के मुख्य द्वार पर गोबर, गेरू या मिट्टी से सर्प की आकृति बनाएं और इसकी पूजा करें। घर के मुख्य द्वार पर सर्प की आकृति बनाने से जहां आर्थिक लाभ होता है, वहीं घर पर आने वाली विपत्तियां भी टल जाती हैं।

इसके बाद ‘ऊं कुरु कुल्ले फट् स्वाहा’ का जाप करते हुए घर में जल छिड़कें। अगर आप नागपंचमी के दिन आप सामान्य रूप से भी इस मंत्र का उच्चारण करते हैं तो आपको नागों का तो आर्शीवाद मिलेगा ही साथ ही आपको भगवान शंकर का भी आशीष मिलेगा बिना शिव जी की पूजा के कभी भी नागों की पूजा ना करें। क्योंकि शिव की पूजा करके नागों की पूजा करेंगे तो वो कभी अनियंत्रित नहीं होंगे नागों की स्वतंत्र पूजा ना करें, उनकी पूजा शिव जी के आभूषण के रूप में ही करें।

Nag Panchami Hindi : नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चांदी या तांबे से निर्मित) के सामने यह मंत्र बोलें।

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपाल धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।

इसके बाद पूजा व उपवास का संकल्प लें। नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, फूल, धूप, दीप से पूजा करें व सफेद मिठाई का भोग लगाएं। यह प्रार्थना करें।

सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।
ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।

प्रार्थना के बाद नाग गायत्री मंत्र का जाप करें-

ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।

इसके बाद सर्प सूक्त का पाठ करें

ब्रह्मलोकुषु ये सर्पा: शेषनाग पुरोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
कद्रवेयाश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इंद्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
पृथिव्यांचैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
ग्रामे वा यदिवारण्ये ये सर्पा प्रचरन्ति च।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
समुद्रतीरे ये सर्पा ये सर्पा जलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
रसातलेषु या सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।

नागदेवता की आरती करें और प्रसाद बांट दें। इस प्रकार पूजा करने से नागदेवता प्रसन्न होते हैं और हर मनोकामना पूरी करते हैं।

नागपंचमी

महाभारत आदि ग्रंथों में नागों की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। इनमें शेषनाग, वासुकि, तक्षक आदि प्रमुख हैं। नागपंचमी के अवसर पर हम आपको ग्रंथों में वर्णित प्रमुख नागों के बारे में बता रहे हैं।

तक्षक नाग

धर्म ग्रंथों के अनुसार, तक्षक पातालवासी आठ नागों में से एक है। तक्षक के संदर्भ में महाभारत में वर्णन मिलता है। उसके अनुसार, श्रृंगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक ने राजा परीक्षित को डसा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। तक्षक से बदला लेने के उद्देश्य से राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञ में अनेक सर्प आ-आकर गिरने लगे। यह देखकर तक्षक देवराज इंद्र की शरण में गया। जैसे ही ऋत्विजों (यज्ञ करने वाले ब्राह्मण) ने तक्षक का नाम लेकर यज्ञ में आहुति डाली, तक्षक देवलोक से यज्ञ कुंड में गिरने लगा। तभी आस्तिक ऋषि ने अपने मंत्रों से उन्हें आकाश में ही स्थिर कर दिया। उसी समय आस्तिक मुनि के कहने पर जनमेजय ने सर्प यज्ञ रोक दिया और तक्षक के प्राण बच गए।

कर्कोटक नाग

कर्कोटक शिव के एक गण हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सर्पों की मां कद्रू ने जब नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब भयभीत होकर कंबल नाग ब्रह्माजी के लोक में, शंखचूड़ मणिपुर राज्य में, कालिया नाग यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, एलापत्र ब्रह्मलोक में और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए। ब्रह्माजी के कहने पर कर्कोटक नाग ने महाकाल वन में महामाया के सामने स्थित लिंग की स्तुति की। शिव ने प्रसन्न होकर कहा- जो नाग धर्म का आचरण करते हैं, उनका विनाश नहीं होगा। इसके बाद कर्कोटक नाग उसी शिवलिंग में प्रवेश कर गया। तब से उस लिंग को कर्कोटेश्वर कहते हैं। मान्यता है कि जो लोग पंचमी, चतुर्दशी और रविवार के दिन कर्कोटेश्वर शिवलिंग की पूजा करते हैं उन्हें सर्प पीड़ा नहीं होती।

कालिया नाग

श्रीमद्भागवत के अनुसार, कालिया नाग यमुना नदी में अपनी पत्नियों के साथ निवास करता था। उसके जहर से यमुना नदी का पानी भी जहरीला हो गया था। श्रीकृष्ण ने जब यह देखा तो वे लीलावश यमुना नदी में कूद गए। यहां कालिया नाग व भगवान श्रीकृष्ण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंत में श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को पराजित कर दिया। तब कालिया नाग की पत्नियों ने श्रीकृष्ण से कालिया नाग को छोडऩे के लिए प्रार्थना की। तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि तुम सब यमुना नदी को छोड़कर कहीं और निवास करो। श्रीकृष्ण के कहने पर कालिया नाग परिवार सहित यमुना नदी छोड़कर कहीं और चला गया। इनके अलावा कंबल, शंखपाल, पद्म व महापद्म आदि नाग भी धर्म ग्रंथों में पूज्यनीय बताए गए हैं। नागपंचमी पर नागों की पूजा कर आध्यात्मिक शक्ति और धन मिलता है। लेकिन पूजा के दौरान कुछ बातों का ख्याल रखना बेहद जरूरी है। अगर कुंडली में राहु-केतु की स्थिति ठीक ना हो तो इस दिन विशेष पूजा का लाभ पाया जा सकता है।

जिनकी कुंडली में विषकन्या या अश्वगंधा योग हो, ऐसे लोगों को भी इस दिन पूजा-उपासना करनी चाहिए. जिनको सांप के सपने आते हों या सर्प से डर लगता हो तो ऐसे लोगों को इस दिन नागों की पूजा विशेष रूप से करना चाहिए।

भूलकर भी ये ना करें

  1. जो लोग भी नागों की कृपा पाना चाहते हैं उन्हें नागपंचमी के दिन ना तो भूमि खोदनी चाहिए और ना ही साग काटना चाहिए.।
  2. उपवास करने वाला मनुष्य सांयकाल को भूमि की खुदाई कभी न करे।
  3. नागपंचमी के दिन धरती पर हल न चलाएं।
  4. देश के कई भागों में तो इस दिन सुई धागे से किसी तरह की सिलाई आदि भी नहीं की जाती।
  5. न ही आग पर तवा और लोहे की कड़ाही आदि में भोजन पकाया जाता है।
  6. किसान लोग अपनी नई फसल का तब तक प्रयोग नहीं करते जब तक वह नए अनाज से बाबे को रोट न चढ़ाएं।

राहु-केतु से परेशान हों तो क्या करें

एक बड़ी सी रस्सी में सात गांठें लगाकर प्रतिकात्मक रूप से उसे सर्प बना लें इसे एक आसन पर स्थापित करें। अब इस पर कच्चा दूध, बताशा और फूल अर्पित करें। साथ ही गुग्गल की धूप भी जलाएं. इसके पहले राहु के मंत्र ‘ऊं रां राहवे नम:’ का जाप करना है और फिर केतु के मंत्र ‘ऊं कें केतवे नम:’ का जाप करें। जितनी बार राहु का मंत्र जपेंगे उतनी ही बार केतु का मंत्र भी जपना है। मंत्र का जाप करने के बाद भगवान शिव का स्मरण करते हुए एक-एक करके रस्सी की गांठ खोलते जाएं. फिर रस्सी को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें. राहु और केतु से संबंधित जीवन में कोई समस्या है तो वह समस्या दूर हो जाएगी।

सांप से डर लगता है या सपने आते हैं।

अगर आपको सर्प से डर लगता है या सांप के सपने आते हैं तो चांदी के दो सर्प बनवाएं साथ में एक स्वास्तिक भी बनवाएं। अगर चांदी का नहीं बनवा सकते तो जस्ते का बनवा लीजिए। अब थाल में रखकर इन दोनों सांपों की पूजा कीजिए और एक दूसरे थाल में स्वास्तिक को रखकर उसकी अलग पूजा कीजिए। नागों को कच्चा दूध जरा-जरा सा दीजिए और स्वास्तिक पर एक बेलपत्र अर्पित करें. फिर दोनों थाल को सामने रखकर ‘ऊं नागेंद्रहाराय नम:’ का जाप करें। इसके बाद नागों को ले जाकर शिवलिंग पर अर्पित करें और स्वास्तिक को गले में धारण करें। ऐसा करने के बाद आपके सांपों का डर दूर हो जाएगा और सपने में सांप आना बंद हो जाएंगे।

नागपंचमी के दिन वर्जित कार्य

  • नागपंचमी के दिन ना तो भूमि खोदनी चाहिए और ना ही साग काटना चाहिए ।
  • उपवास करने वाला मनुष्य सांयकाल को भूमि की खुदाई कभी न करे ।
  • नागपंचमी के दिन धरती पर हल न चलाएं ।
  • इस दिन सुई धागे से किसी तरह की सिलाई आदि भी वर्जित है ।
  • नागपंचमी के दिन न तो आग पर तवा रखा जाता है, और न ही लोहे की कड़ाही आदि में भोजन पकाया जाता है, अर्थात नागपंचमी पर एक दिन पहले पका हुआ भोजन ही ग्रहण करने का विधान है
  • किसान लोग अपनी नई फसल का तब तक प्रयोग नहीं करते जब तक वह नए अनाज से बाबे को रोट न चढ़ाएं ।

महावीर व्यास (दाधीच),
बामनिया कलां, राजसमंद