Poet’s poems : स्व. श्री नन्द चतुर्वेदी जी की 21 अप्रैल 2024 को 101वीं जयन्ती थी। इसे उनके चाहने वाले उनके विचारों और उनकी कविताओं को सराहने वाले उन्हें श्रद्धा के साथ याद करते हुए राजस्थान के सभी साहित्यकार अपने अपने तरीके के साथ उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। राजस्थान साहित्यकार परिषद कांकरोली ने स्व. नन्द बाबू पर केन्द्रित संगोष्ठी रख उनकी कविताओं का पाठ व आलेखों का निचौड़ प्रस्तुत कर एक अनूठा प्रयास किया है, जो स्वागत योग्य है।
जन तंत्र के स्वागत में दिनकर जी ने लिखा था-
दो राह के रथ का घर-घर नाद सुनो
सिंहासन खाली करो की जनता आती है।
Poet Nand Babu : तो स्व. नन्द बाबू ने गणतंत्र पर हर भारतीय को मिलने वाले सम्मान की कल्पना करते हुए अपनी कविता में लिखा – यह देखो पहली बार धरा मुस्काती है। तुम तानों सीना, गर्दन झुकी करो सीधी। यह देखो जनता नए सुरों में गाती है।
स्व. नन्द बाबू की कविता पुस्तक “गा हमारी जिन्दगी कुछ गा” के लोकार्पण समारोह में मुझे भी शामिल होने का मौका मिला। उदयपुर के और आस-पास के क्षेत्रों के कई साहित्यकारों ने नन्द बाबू की इस पुस्तक पर अपने विचारों को रखा और सराहा। स्व. नन्द बाबू ने इस पुस्तक के पूर्व भी “यह समय मामूली नहीं”, “ईमानदार दुनिया के लिये”, “उत्सव का निर्मम समय”, “वे सोये तो नहीं होेंगे”, “जहां उलाहने की एक रेखा खींची है” कविता संग्रह साहित्य जगत में स्व. नन्द बाबू की कविताओं का लोहा मनवा चुके हैं। क्रूर शाक्तियों की अविस्मरणीय घटना की तरह अपनी कविता में प्रस्तुत करने की कला स्व. नन्द बाबू में थी जैसे उत्सव के आतंक में। गांव के पतझड के पेड़ जैसा दरिद्र और निरूपुह हो गया है। औरतों के कंधो पर नंग-धडंग बच्चे बैठे हैं। वे थक गये हैं। उत्सव के एक दिन पहले। एक कविता में वे कहते है पराजय कब नहीं थी। कब नहीं थे झूठ के लिये वाह-वाह करने वाले। स्व. नन्द बाबू की एक ओर महत्वपूर्ण लम्बी कविता “सडक नदी नहीं है” में वे एक जगह कहते हैं “सडक जहां जुतों की रगड़”। लहु-लुहान पैर अपमान की दुर्घटनाएं है। वे जो यहां रख लेंगे पहचाने जायेंगे। अपने उत्साह व उमंग के लिये। पुरूष प्रधान परम्परा पर भी एक कविता में स्व. नन्द बाबू ने क्या खूब लिखा है- स्त्री का काम सेवा करना है। स्वागत करना है। चाय बनाना है। झाडू लगाना है। अपने बीमार चेहरे को चमकाना है। स्त्री का काम शांत रहना है। कबाड खाने का चीज होना है। पुरानी टुटी-फुटी लेकिन देखने लायक। Rajsamand
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Poem’s : एक ओर कविता “मोबाइल वाली लडकी” भी आज के संदर्भ में दिल को छुने वाली कविता बन पडी है। स्व. नन्द बाबू ईमानदार कविता के एक ऐसे स्वर की झनकार थे, जिसकी गूंज युगो-युगों तक गूंजती रहेगी। समय से टकराना। सच्चाई से आंख मिलाकर बात करना और मनुष्य को सम्पूर्ण मनुष्य बनाने वाली सार्थक कविताएं समाज को देना ही स्व. नन्द बाबू का ध्येय रहा था और उन्होंने ऐसे ही समय के आर-पार की कविताएं लिखी थी। उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि।
अफजल खां अफ़ज़ल
वरिष्ठ साहित्यकार
जलचक्की, कांकरोली
मो. 98284-75288