भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की बात हो तो रानी लक्ष्मीबाई का जिक्र जरूर होता है। दोनों हाथों में तलवार, मुंह में घोड़े की लगाम और पीठ पर अपने बेटे को बांधकर जब लक्ष्मीबाई मैदान में उतरीं तो अंग्रेजों ने साक्षात चंडी का रूप देखा। अंग्रेजों से लोहा लेते हुए आज ही के दिन साल 1858 में रानी लक्ष्मीबाई शहीद हुई थीं।
19 नवंबर 1828 को मोरोपंत तांबे और भागीरथी बाई के यहां एक बेटी का जन्म हुआ। मां-बाप ने बेटी का नाम मणिकर्णिका रखा और प्यार से मनु बुलाने लगे। मणिकर्णिका के बचपन में ही मां भागीरथी बाई का निधन हो गया। इसके बाद पिता मोरोपंत तांबे बेटी को लेकर झांसी आ गए।
यहां मणिकर्णिका ने घुड़सवारी और तलवारबाजी जैसी युद्ध कलाएं सीखीं। कम उम्र में ही उनकी शादी मराठा नरेश गंगाधर राव से हो गई और मणिकर्णिका का नाम लक्ष्मीबाई हो गया।
1851 में लक्ष्मीबाई को एक बेटा हुआ, लेकिन कुछ महीनों बाद ही उसका निधन हो गया। गंगाधर राव को अपने बेटे की मौत का गहरा सदमा लगा और उनकी तबीयत खराब रहने लगी। 20 नवंबर 1853 को गंगाधर राव ने एक बच्चे को गोद लिया जिसका नाम दामोदर राव रखा गया, लेकिन अगले ही दिन गंगाधर राव का निधन हो गया।
पति के निधन के बाद रानी लक्ष्मीबाई की मुसीबतें बढऩे लगीं। अंग्रेजों ने झांसी पर कब्जा करने के लिए एक चाल चली। लॉर्ड डलहौजी ने दामोदर राव को उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया और रानी को किला खाली करने का आदेश दिया। लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों का आदेश मानने से इनकार कर दिया और कहा- मैं झांसी नहीं दूंगी। लक्ष्मीबाई ने पहले कानूनी तरीके से कोई रास्ता निकालने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी तो अंग्रेजों से लडऩे की योजना तैयार करने लगीं।
अंग्रेजों ने झांसी पर हमला कर दिया तो लक्ष्मीबाई ने अपनी छोटी सी सेना के साथ अंग्रेजों का वीरता से मुकाबला किया। अपने बेटे को पीठ पर बांधकर रानी लड़ती रहीं। जब अंग्रेजों ने किले को पूरी तरह से घेर लिया तो रानी के हमदर्द ककुछ लोगों ने उन्हें कालपी जाने की सलाह दी।
रानी कालपी के लिए निकलीं और यहां उनका साथ देने के लिए तात्या टोपे तैयार थे। 22 मई 1858 को अंग्रेजी सेना और लक्ष्मीबाई के बीच कालपी में भी युद्ध हुआ, जिसमें रानी लक्ष्मीबाई की सेना को खासा नुकसान उठाना पड़ा। लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे के साथ ग्वालियर की ओर चली गईं। यहां उन्होंने ग्वालियर पर कब्जा कर लिया और नाना साहेब को पेशवा बनाने की घोषणा की। रानी के पीछे-पीछे अंग्रेजी सेना भी ग्वालियर आ गई और हमला कर दिया।
18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में भीषण युद्ध हुआ। रानी अपने दोनों हाथों में तलवार लेकर दुश्मनों का मुकाबला कर रही थीं। उनके सीने में अंग्रेजों ने बरछी मार दी थी जिस वजह से काफी खून बह रहा था। उसके बावजूद रानी घोड़े पर सवार होकर युद्ध करती रहीं। एक अंग्रेज ने लक्ष्मीबाई के सिर पर तलवार से जोरदार प्रहार किया जिससे रानी को गंभीर चोट आई और वह घोड़े से गिर गईं। रानी के सैनिक उन्हें पास के एक मंदिर में ले गए जहां उन्होंने दम तोड़ दिया। रानी ने वादा किया था कि उनका शव अंग्रेजों के हाथ न लगने पाए, इसलिए सैनिकों ने रानी के शव को इसी मंदिर में अग्नि के हवाले कर दिया।
1980 : शकुंतला देवी ने किया था कारनामा
18 जून 1980। लंदन का इंपीरियल कॉलेज। ह्यूमन कम्प्यूटर के नाम से मशहूर भारत की शकुंतला देवी इस कॉलेज में एक कारनामा करने जा रही थीं। डिपार्टमेंट ऑफ कम्प्यूटिंग की तरफ से उन्हें 13 अंकों की दो संख्याएं दी गईं। ये संख्याएं थीं 7, 686, 369, 774, 870 और 2, 465, 099, 745, 779। शकुंतला देवी को इन संख्याओं का आपस में गुणा करना था, वो भी बिना किसी कैलकुलेटर और पेन-कॉपी की मदद लिए। पूरे हॉल की नजरें शकुंतला देवी पर थीं। 28 सेकेंड में ही शकुंतला देवी ने दोनों संख्याओं का गुणा कर दिया। उनका जवाब एकदम सही था। उनके इस कारनामे से हॉल में बैठे लोग दंग रह गए। साल 1982 में उनके इस कारनामे को गिनीज बुक में जगह दी गई।
आज गोवा का क्रांति दिवस
वैसे तो 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों से आजाद हो गया था, लेकिन इसके 14 साल बाद तक गोवा पर पुर्तगालियों का कब्जा रहा। गोवा की आजादी के लिए एक लंबा आंदोलन चला जिसका नींव आज ही के दिन 1946 में रखी गई थी। इसी दिन डॉ. राम मनोहर लोहिया ने गोवा जाकर वहां के लोगों को पुर्तगालियों के खिलाफ आंदोलन करने के लिए प्रेरित किया था। हजारों लोगों ने गोवा की आजादी के आंदोलन में भाग लिया और 14 साल के लंबे संघर्ष के बाद 19 दिसंबर 1961 को गोवा पुर्तगालियों से आजाद हुआ। हर साल इस दिन की याद में गोवा में क्रांति दिवस मनाया जाता है।