Holi in Dwarkadhish Temple : नाथद्वारा और कांकरोली सहित देश के सभी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में वसंत पंचमी से लेकर होली व धुलंडी तक रंगोत्सव की एक सतत् शृंखला चलती है। ऐसा लगता है मानो इन वृहत् सांस्कृतिक केन्द्रों में बाह्य प्रकृति में सर्वत्र उड़ रहे पीत, गुलाबी, हरित रंगों से संवाद कर हम अपनी अंत:प्रकृति में भी उसी रंगोल्लास की अनुभूति कर आनंदित होते हैं। पुष्टि मार्ग के आराध्य श्रीकृष्ण व उनके आसपास के सम्पूर्ण परिकर गोवर्धन, वन, यमुना, करील कुंज, निकुंज आदि को देख ऐसा लगता है, मानों इन मंदिरों में प्रकृति के इन उपादान या उपकरणों से यहां की प्रभु सेवा को जोड़कर इस विशाल प्राकृतिक संपदा को “तेरा तुझको अर्पण’ के भाव से लीला नायक श्रीकृष्ण को ही समर्पित किया जा रहा है। राजस्थान के राजसमंद जिले में नाथद्वारा में श्रीनाथजी मंदिर और राजसमंद में श्री द्वारकाधीश मंदिर की होली पूरे देश में अनूठी है, जिसे देखने और श्रीनाथजी व द्वारकाधीश के दर्शन के लिए देशभर से लोग आते हैं।
प्रकृति से पुष्टिमार्ग की इस निकटता को हम बहुत गहनता से होली के प्रसंग में अनुभव कर सकते हैं। लगता है, हमारे प्रभु को पुष्पों से अत्यधिक अनुराग है। तभी तो मंदिर का फूलघर इन दिनों जीवंत रहता है। ठाकुरजी प्राय: इन दिनों फूल मंडली में बिराजकर सेवा अंगीकार करते हैं। कहा जा सकता है कि निकुंज सेवा के मिस ठाकुरजी स्वयं को प्रकृति नायक होने की स्थिति में हम भक्तों को आनंदित करते हैं। गुलाब, कदंब, चमेली, जूही, रायबेल, टेसू से सज्जित शृंगार सेवा पुष्टि गृहों की ही नहीं, ब्रजमंडल के सभी मंदिरों की विशेषता है। पुष्पों से निर्मित बंगलों के शिल्पियों की कला से हम भी कभी कभी बड़े मनोरथ, उत्सवों में परिचित होते रहते हैं। कुंज एकादशी, चौरासी खंभ और डोल वे प्रसंग हैं, जहां प्रकृति के अलौकिक वैभव के बीच भगवान अपनी लीलाओं से भक्तगण को परिचित कराते हैं। यह पुष्टि गृहों के देवालयों का ही वैभव है, जहां रंगोत्सव के संदर्भ में प्रकृति के समस्त उपकरणों यथा-कुंज, यमुना पुलीन, वनस्पति, वृक्ष, पुष्प मंडली, गिरि गोवर्धन, गोधन को हम प्रत्यक्ष या भाव के स्तर पर अनुभव करते हैं और प्रकृति प्रदत्त हर्बल सुगंधित स्वास्थ्य वर्द्धक रंगों से प्रभु संग होली खेलते हैं। होली का दूसरा दिवस डोल के दर्शनों के माध्यम से प्रकृति के साथ हमारे जुड़ाव का संदेश देने वाला दिवस है। इस अवसर पर प्रभु की श्रृंगार सेवा बड़ी चित्ताकर्षक और रंग चटक, सुगंध भरे होते हैं। यही तो है इन दिनों का आनन्द।
इसी नैसर्गिक आनन्द की अनुभूति को कीर्तन संगीतकार नंददास ने इस प्रकार अभिव्यक्ति प्रदान की है-
फूलन को मुकुट बन्यो, फूलन को पिछौरा तन्यो
सोहत अति प्यारे पर, फूलन को सिंगार है।
Holi : पर्यावरण संरक्षण व संवर्द्धन की प्रेरक कहानी
Holi Festival : दर्शनार्थियों के लिए यह एक सुखद अनुभव का विषय है, जब वे इन दिनों निकुंज नायक प्रभु की खजूर और सरसों की डाल सहित आम के मोड़ और कलियों के श्रृंगार से सज्जित छवि के दर्शन करते हैं। वन, कालिंदी, गोवर्धन के साथ विशेष रूप से छौंकर(शमी), कदली खंभ को देख हमें पुष्टि सेवा में वृक्ष, वन, उपवनों की महत्ता का बोध होता है। यहां वृक्षों को इसीलिए “हरिदास वर्य’ कहकर आदर दिया है, जिन्हें श्री हरि ने अपने प्रिय सेवक के रूप में वरण किया है, ऐसे वृक्ष, वन, उपवन। कुंज एकादशी से लेकर त्रयोदशी पर्यंत चौरासी खंभ तक हरित वृक्षावलियों की सेवा में प्रविष्ठि पुष्टि मार्ग में प्रकृति पर्यावरण के पूजन द्वारा उनके संरक्षण व संवर्द्धन का संदेश देती है। एकादशी व त्रयोदशी सहित डोल के पर्व ब्रजमंडल के द्वादश वन और चौरासी उपवनों की भावना को समेटे हुए हैं। इस विराट वन संपदा के इन दिनों दर्शन वन देवी के पूजन के भाव से किए जाने चाहिए। कीर्तनकार आह्वान भी करते हैं-“पूजन चलौ कदंब वन देवी’।
कहा जा सकता है कि होलिकोत्सव सहित वर्ष पर्यंत पुष्टि गृहों में जिस प्रभु सेवा के विविध रूप दर्शन हमें होने का सौभाग्य मिलता है, वह प्रकृति पर्यावरण के संरक्षण के प्रति आचार्यों की कालजयी अवधारणा और तदनुरूप सेवा में संलग्न विद्वान सेवार्थी जन (मुखिया, भीतरिया तो बहुत सामान्य संबोधन होगा) की सूक्ष्म दृष्टि का परिचायक है। ऐसे विशाल परिदृश्य को समाहित किए पुष्टिमार्ग का यह एक दृष्टि बिंदु है। अभी तो-“हरि अनंत हरि कथा अनंता’।
डॉ. राकेश तैलंग
वरिष्ठ साहित्यकार
मंदिर मार्ग, कांकरोली
मो. 9460252308